हिंदू धर्म में द्वादश ज्योतिर्लिंग या 12 jyotirlinga भगवान शिव के प्रतिरूप है ।
भगवान शिव को श्रृष्टि के त्रिदेव में से एक माना जाता है और उनकी आराधना करने का विशेष महत्व है।
भगवान शिव की उपासना करने से जीवन में सुख- समृद्धि, अक्षय पुण्य मिलता है साथ ही नकारात्मकताओं और जीवन में बाधाओ से छुटकारा मिलता है ।भगवान शिव जहां जहां स्वयं से प्रकट हुए है उन स्थानों को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है।
हिंदू धर्म में त्रिदेवों में से एक भगवान शिव जो श्रृष्टि के संहारक कहे जाते है जिनके द्वारा उत्तपन्न किए गये
ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से मनुष्य अथवा देवता गणों को अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।
ज्योतिर्लिंग जो स्वयंभू या जो स्वयं प्रकट हुए है और उनमे ऊर्जा का अनन्य श्रोत माना जाता है ।
ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही भक्त भगवान शिव के ऊर्जा को महसूस कर पाते हैं। ज्योतिर्लिंग शब्द दो अक्षरों से मिलकर बना है “ ज्योति ” जिसका सरल अर्थ प्रकाश होता है और “ लिंग “ जिसका अर्थ प्रतीक होता है आसान शब्दों में समझे तो ज्योतिर्लिंग का अर्थ प्रकाश / ऊर्जा ।
आइये जानते है भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के बारे में और उनसे जुड़े तथ्यों के बारे में -
First of 12 jyotirlinga Somnath:
गुजरात के सौराष्ट्र ज़िले के कठियावाड़ क्षेत्र में समुंदर के किनारे स्तिथ सोमनाथ मंदिर में भगवान शिव के 12 jyotirlinga में सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है जिसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है ।
इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत , श्रीमद्भागवत और स्कन्द पुराण में भी उल्लेख मिलता है।
चन्द्रदेव ने भगवान शिव को अपना स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी जिसके फल स्वरूप भगवान शिव स्वयं से लिंग के रूप में उत्तपन्न हुए जिसकी वजह से यहाँ का नाम सोमनाथ रखा गया।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से भक्तों को धन-धान्य और शांति मिलती है।
Second of 12 jyotirlinga Mallikarjun:
आंध्र प्रदेश के कृष्णा ज़िले में कृष्ण नदी के किनारे शैल पर्वत पर भगवान शिव माता पार्वती संग विराजमान हैं।
शिवपुराण के अनुसार भगवान कातिकेय अपने माता पिता से नाराज़ होकर कैलाश पर्वत छोड़ क्रोंच पर्वत पर रहने लगे थे तब माता पार्वती और भगवान शिव उन्हें मनाने के लिए वहाँ पूछ गये पर कार्तिकेय जी वहाँ से भी चले गये और भगवान शिव और माता पार्वती वही विराजमान हो गए।
मल्लीकार्जुन ज्योतिर्लिंग के साथ ही साथ एक देवी शक्तिपपीठ भी है।
मल्लीकार्जुन ज्योतिर्लिंग मात्र से भक्तों के पुराने पापों से छुटकारा मिलता है।
Third of 12 jyotirlinga Mahakaleshwar:
मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं।
यह पूरे ब्रह्मांड में एकमात्र दक्षिणामुखी ज्योतिर्लिंग है जिसे बिना किसी मंत्र और यंत्र के बिना भी अत्याधिक शक्तिशाली माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि यह ज्योतिर्लिंग सबसे शक्तिशाली है और इसमें अपार शक्ति (ब्रह्मांडीय ऊर्जा) है।
Fourth of 12 jyotirlinga Omkaleshwar:
मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी द्वारा निर्मित शांत ओंकारेश्वर द्वीप पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, प्रकृति और आध्यात्मिकता का एक दिव्य मिश्रण है। बारह प्रतिष्ठित ज्योतिर्लिंगों में से एक, यह मंदिर विशिष्ट रूप से पवित्र हिंदू प्रतीक "ओम" के आकार का है। अपने आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ, ओंकारेश्वर अपनी मनोरम प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें द्वीप के चारों ओर शांत रूप से बहती हुई नर्मदा है। मंदिर की शैली और कला में सुंदरता होने के साथ-साथ, इसका परिसर प्राकृतिक सौंदर्य से भी परिपूर्ण है। यहां के सुरम्य कुंडल और वृक्षों की छाया मंदिर को एक शांतिपूर्ण आत्मस्फीति का वातावरण प्रदान करते हैं।
Fifth of 12 jyotirlinga Baidyanath:
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर जिले के बैद्यनाथ नगर में स्थित है। यह भगवान शिव के 12 jyotirlinga में से एक है।
वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण देवघर के राजा भगवंत राय ने किया था और यह भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। मंदिर का शिखर एक ऊँचा पत्थर से बना हुआ है और इसका निर्माण शैली में भारतीय सांस्कृतिक स्वाभाव को दर्शाता है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्वपूर्ण पर्व "श्रावण मास" में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, जिसमें भक्त भगवान शिव की पूजा करने के लिए मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर की पवित्रता, शहर के शांत वातावरण के साथ मिलकर, भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए एक आध्यात्मिक विश्राम प्रदान करती है।
Sixth of 12 jyotirlinga Bhimashankar:
महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और इसे भगवान शिव के एक पुराणिक कथा से जोड़ा जाता है।
कथा के अनुसार, भगवान शिव ने दाक्षिण दिशा में अपने भयंकर रूप में प्रकट होकर असुर राजा भीमाकाय को मारा था और उसका शव अपने भूमिपर गिराया था। इसके पश्चात्, देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की और उन्हें उनके भयंकर रूप से शांतिप्रद रूप में बदला गया। यह स्थान भीमाशंकर नाम से प्रसिद्ध हुआ, जिसमें "भीम" अपने भयंकर रूप को और "शंकर" उसके शांतिप्रद रूप को दर्शाता है।
मान्यता है कि इस स्थान पर दर्शन मात्र से ही साधकों भय योग एवं दोष से मुक्ति मिल जाती है।
Seventh of 12 jyotirlinga Rameshwaram:
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु में स्थित है और यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल है। यह समुद्र के किनारे, रामेश्वर द्वीप पर स्थित है, जिसे पुलिकट द्वारा मैंनार्स द्वीप से जोड़ा जाता है। रामेश्वर, जो रामनाथपुरम के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के पूज्य लिंग की विशेषता से प्रसिद्ध है।
इस ज्योतिर्लिंग का संबंध भगवान श्रीराम के वनवास के समय के घटनाओं से है। इस जगह पर त्रेतायुग में हुई एक घटना के बाद, श्रीराम ने समुद्र के तट पर बालू से शिवलिंग का निर्माण किया था। समय के साथ यह शिवलिंग वज्र के समान हो गया था। श्री राम द्वारा निर्मित शिवलिंग के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को रामेश्वरम कहा जाता है। शिवलिंग स्थापित किया, जिसे रामेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।
मंदिर का संरचनात्मक शैली, सागर का सुंदर दृश्य और ऐतिहासिक महत्व ने इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल बना दिया है।
Eighth of 12 jyotirlinga Nageshwar:
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका नगर में स्थित है और यह हिन्दू धर्म के 12 jyotirlinga में से एक है। इस तीर्थ स्थल पर भगवान शिव का पूजा-अर्चना किया जाता है और यह एक महत्वपूर्ण पिलगृम स्थल माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, यह वह स्थान है जहां भगवान शिव ने राक्षस दारुका को हराया था, जिसे नागेश्वर या "सांपों के भगवान" नाम से जाना जाता है।
Ninth of 12 jyotirlinga Kashi Vishwanath:
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है और वाराणसी को मोक्ष दायिनी काशी के नाम से भी जाना जाता है और यह विश्व की सबसे पुराने शहरों में से एक है जिसे भारत का आध्यात्मिक शहर भी कहा जाता है ।
काशी विश्वनाथ मंदिर एक प्राचीन और पवित्र स्थल है जो संसार के सबसे पुराने शिव मंदिरों में से एक है।
मंदिर के गोले शिखर और सोने की दरवाजाएं इसे विशेष बनाती हैं।मंदिर सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के शिव भक्तों का एक प्रमुख पुनर्जन्म स्थल है।
मंदिर न केवल धार्मिक महत्व का स्थल है, बल्कि एक ऐसा स्थान भी है जहां जीवन और मृत्यु अस्तित्व के चक्र में मिलते हैं। मंदिर की घंटियों की गूंज, पवित्र आरती और वाराणसी की सर्वव्यापी आध्यात्मिकता काशी विश्वनाथ को एक दिव्य तीर्थ बनाती है।
Tenth of 12 jyotirlinga Trayambakeshwar :
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के नासिक जिले के त्र्यम्बकेश्वर में ब्रह्मागिरी पर्वत पर स्थित है और इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। इसी स्थान पर गौतम ऋषि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी।यह भगवान शिव को समर्पित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख है क्यूकी अपनी अनूठी वास्तुकला से प्रतिष्ठित इस प्राचीन मंदिर में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के प्रतीक तीन मुखों वाला एक दुर्लभ लिंग है।
त्र्यम्बकेश्वर में त्रिवेणी संगम भी है, जहां गोदावरी, भीमा, और हिरण्यकेशी नदियां मिलती हैं। यहां की वातावरण शांतिपूर्ण है और भगवान शिव की भक्ति में लोग यहां आते हैं।
Eleventh of 12 jyotirlinga Kedarnath:
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग हिमालय पर्वत क्षेत्र में स्थित है और यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल है। यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव को समर्पित है और यह भारतीय तांत्रिक शैली में बना है।
केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है, गर्हवल पर्वतीय क्षेत्र में। मंदिर गंगोत्री नदी के केदार घाटी में स्थित है और यहां पहुंचने के लिए भक्तों को यात्रा करनी पड़ती है।
मान्यता है कि महाभारत काल में भगवान शिव ने पांडवों को इसी स्थान पर बैल रूप में दर्शन दिया था। केदारनाथ धाम का निर्माण आठवें या 9 वीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा कराया गया था।
यहां का शिवलिंग बर्फीले पर्वतों के बीच स्थित है और यहां की प्राकृतिक सौंदर्य से भरी हुई घाटी बहुत आकर्षक है।
यहां की यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्वपूर्णता के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लेने के लिए एक सुविधाजनक स्थान है।
Twelfth of 12 jyotirlinga Grishneshwar:
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है और यह एक प्रमुख हिन्दू तीर्थ स्थल है। शिव पुराण में भी भगवान शिव के इस अंतिम ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है। यहां भगवान शिव के दर्शन और पूजा-पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
यह ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का है और इसे वायुपुत्र भी कहा जाता है। गृष्णेश्वर मंदिर, जिसमें यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, एक प्राचीन और सुंदर शिवालय है जिसे चलुक्य राजवंश के किंग राजा कृष्णराज ने 7वीं शताब्दी में निर्मित किया था।
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